पितृ विसर्जन अमावस्या 25 सितम्बर 2022

पितृ विसर्जन अमावस्या

शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन ऋणों से मुक्त होना जरूरी  बताया है और यह तीन ऋण हैं देव ऋण ऋषि ऋण पितृ  ऋण। इन 3 ऋणों में से पित्र ऋण को श्राद्ध द्वारा उतारना आवश्यक है क्योंकि जिन माता पिता ने हमारी आयु आरोग्य सुख सौभाग्य की वृद्धि के लिए अनेक यात्रा और प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक  है। और उनके ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्च हो ऐसा भी नहीं है। वर्तमान में चार प्रकार के श्राद्ध प्रचलित हैं । पार्वण  श्राद्ध एकोद्दिष्ट,  वृद्धि और सपिंडीकरण ।  प्रतिवर्ष मृत्यु तिथि पर एकोदिष्ट  श्राद्ध किया जाता है जिसको मध्यान्ह में दोपहर को करने की आज्ञा है। केवल वर्ष भर में एक बार उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल, तिल जो कुछ भी उपलब्ध , फूल आदि  से श्राद्ध संपन्न करने,  गाय के लिए ग्रास निकालना और 3 या 5  ब्राह्मणों को भोजन करा देने से यह ऋण उतर जाता है।

अभी श्राद्ध पक्ष समाप्त होने को है आज पितृ विसर्जन अमावस्या है ।अगर पूरे श्राद्ध पक्ष में किसी के द्वारा अपने पितरों के लिए श्राद्ध नहीं किया गया है तो अमावस्या के दिन अवश्य करें और जो श्राद्ध नहीं कर सकते हैं। वह भी  अमावस्या के दिन अपने पितरों को याद करें। तांबे के लोटे में जल ले। जल में गंगा जल और तिल और कुश डालकर दाहिने हाथ की अंजलि में  रखकर तर्जनी और अंगूठे के बीच से तीन तीन  अंजलि जल अपने माता, पिता, मातामह और पितामह आदि सभी का नाम ले लेकर के जल दे । इससे भी पितर संतुष्ट होते और आशीर्वाद देकर जाते हैं।

एक और उपाय है, पितरों को संतुष्ट करने का। वह है उनका नाम लेकर उनकी मुक्ति के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए और इस पाठ का फल अपने पितरो को अर्पण कर देना चाहिए। इससे भी पितर संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद देते  हैं। घर में सुख शांति रहती है। उन्नति होती है। आयु आरोग्य यह सभी बढ़ते है।

आजकल कामकाजी बेटे  अपने बुजुर्ग माता-पिता ओं के साथ नहीं रहते हैं। इस वजह से भारतीय संस्कृत की जो परंपराएं हैं। उनसे यह बेटे बेटियां अनभिज्ञ रह जाते हैं ।पुराने जमाने में परिवार में सभी सदस्य मिलजुल कर रहते थे ।घर के बुजुर्ग लोग अपनी भारतीय संस्कृति की परंपराओं का पालन करते थे। जिससे पुत्र पुत्रियां सभी यह सीखते थे और करते थे। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में यह सब पीछे छूट गया है। इसका कारण  है पाश्चात्य संस्कृति की होड़।  उसका विशद परिणाम भी देखने को मिल रहा है ।आज ज्यादातर घर और परिवारों में तनाव ,कलह, द्वेष, घृणा आदि का माहौल है और हो भी क्यों ना क्योंकि वैदिक परंपराओं को भुलाकर कभी सुखी नहीं रहा जा सकता।

अतः मेरा आप सभी से नम्र निवेदन है कि आज पित्र विसर्जन  अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर के, घर को पूरी तरह से साफ कर, झाड़ू पोछा लगा कर, नहा धोकर, साफ कपड़े पहन कर, अपने पितरों को याद करें और एक योग्य ब्राह्मण को भोजन कराएं। अगर यह संभव ना हो तो गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और इस पाठ के फल को अपने पूर्वजों को अर्पित कर दें । इतना करने से भी पितर संतुष्ट हो जाते हैं और आशीर्वाद देकर के जाते हैं।