पितृ विसर्जन अमावस्या 25 सितम्बर 2022

पितृ विसर्जन अमावस्या

शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन ऋणों से मुक्त होना जरूरी  बताया है और यह तीन ऋण हैं देव ऋण ऋषि ऋण पितृ  ऋण। इन 3 ऋणों में से पित्र ऋण को श्राद्ध द्वारा उतारना आवश्यक है क्योंकि जिन माता पिता ने हमारी आयु आरोग्य सुख सौभाग्य की वृद्धि के लिए अनेक यात्रा और प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक  है। और उनके ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्च हो ऐसा भी नहीं है। वर्तमान में चार प्रकार के श्राद्ध प्रचलित हैं । पार्वण  श्राद्ध एकोद्दिष्ट,  वृद्धि और सपिंडीकरण ।  प्रतिवर्ष मृत्यु तिथि पर एकोदिष्ट  श्राद्ध किया जाता है जिसको मध्यान्ह में दोपहर को करने की आज्ञा है। केवल वर्ष भर में एक बार उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल, तिल जो कुछ भी उपलब्ध , फूल आदि  से श्राद्ध संपन्न करने,  गाय के लिए ग्रास निकालना और 3 या 5  ब्राह्मणों को भोजन करा देने से यह ऋण उतर जाता है।

अभी श्राद्ध पक्ष समाप्त होने को है आज पितृ विसर्जन अमावस्या है ।अगर पूरे श्राद्ध पक्ष में किसी के द्वारा अपने पितरों के लिए श्राद्ध नहीं किया गया है तो अमावस्या के दिन अवश्य करें और जो श्राद्ध नहीं कर सकते हैं। वह भी  अमावस्या के दिन अपने पितरों को याद करें। तांबे के लोटे में जल ले। जल में गंगा जल और तिल और कुश डालकर दाहिने हाथ की अंजलि में  रखकर तर्जनी और अंगूठे के बीच से तीन तीन  अंजलि जल अपने माता, पिता, मातामह और पितामह आदि सभी का नाम ले लेकर के जल दे । इससे भी पितर संतुष्ट होते और आशीर्वाद देकर जाते हैं।

एक और उपाय है, पितरों को संतुष्ट करने का। वह है उनका नाम लेकर उनकी मुक्ति के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए और इस पाठ का फल अपने पितरो को अर्पण कर देना चाहिए। इससे भी पितर संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद देते  हैं। घर में सुख शांति रहती है। उन्नति होती है। आयु आरोग्य यह सभी बढ़ते है।

आजकल कामकाजी बेटे  अपने बुजुर्ग माता-पिता ओं के साथ नहीं रहते हैं। इस वजह से भारतीय संस्कृत की जो परंपराएं हैं। उनसे यह बेटे बेटियां अनभिज्ञ रह जाते हैं ।पुराने जमाने में परिवार में सभी सदस्य मिलजुल कर रहते थे ।घर के बुजुर्ग लोग अपनी भारतीय संस्कृति की परंपराओं का पालन करते थे। जिससे पुत्र पुत्रियां सभी यह सीखते थे और करते थे। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में यह सब पीछे छूट गया है। इसका कारण  है पाश्चात्य संस्कृति की होड़।  उसका विशद परिणाम भी देखने को मिल रहा है ।आज ज्यादातर घर और परिवारों में तनाव ,कलह, द्वेष, घृणा आदि का माहौल है और हो भी क्यों ना क्योंकि वैदिक परंपराओं को भुलाकर कभी सुखी नहीं रहा जा सकता।

अतः मेरा आप सभी से नम्र निवेदन है कि आज पित्र विसर्जन  अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर के, घर को पूरी तरह से साफ कर, झाड़ू पोछा लगा कर, नहा धोकर, साफ कपड़े पहन कर, अपने पितरों को याद करें और एक योग्य ब्राह्मण को भोजन कराएं। अगर यह संभव ना हो तो गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और इस पाठ के फल को अपने पूर्वजों को अर्पित कर दें । इतना करने से भी पितर संतुष्ट हो जाते हैं और आशीर्वाद देकर के जाते हैं।

 

कलश स्थापना

कलश स्थापना :

कलश स्थापना करने से पूर्व कलश स्थापना का महुर्त अवश्य देख लेना चाहिये । इस वर्ष 25 अक्टूवर 2022 को कलश स्थापना महुर्त समय निम्न समयो मे कर सकते है। निम्न समय देश की राजधानी दिल्ली के स्थानीय समय अनुसार है। अपने अपने शहरो के लिये कुछ न्युनाधिक हो सकता है वह आप चौघडिया का आरम्भ समय और समाप्ति काल इंटर नेट से प्राप्त कर सकते है।

प्रातः ०६:११ से ७ : ५१ मिनट तक ( 6:11 से 07:51 तक) दिल्ली के लिये

नवरात्र में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। सामान्य रूप से कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। घटस्थापना के दिन से नवरात्रि का प्रारंभ माना जाता है। अगर किसी कारणवश प्रथम दिन कलश स्थापना नही की गयी है, तो बिना कलश स्थापना के भी नवरात्रों का आरम्भ किया जा सकता है । शुभ संकल्प के साथ मानसिक या प्रतक्ष् पूजा द्वारा भी नवरात्रि व्रत शुरु किये जा सकते हैं ।
प्रतिपदा तिथि को शुभ मुहुर्त में घट स्थापना पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कलश को सर्व तीर्थ की संज्ञा दी गई है । आइये अब जानते हैं कि किस प्रकार हम सर्व सुलभ और सरल विधि से कलश स्थापना करे।
कलश स्थापना करने से पूर्व यह सुनिश्चित करे कि कलश स्थापना दोपहर से पहले अवश्य पुर्ण हो जाये। अगर प्रातः महुर्त उपलब्ध है तो प्रातः कलश स्थापना सर्वोत्तम होती है । इसके अतिरिक्त अभिजीत समय मे भी की जा सकती है ।

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
● सप्त धान्य (7 तरह के अनाज) ( जौ, धान, तिल, कंगनी, मूंग, चना और सांवा )
● मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
● सप्त म्रत्तिका (घुड्साल,हाथीसाल,बांबी,नदियो का संगम,तालाब,राजा का द्वार और गौशाला सात स्थानो की मिट्टी)
● कलश, गंगाजल या तीर्थ जल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
● पंच पल्लव (बरगद,गूलर, पीपल,आम,पाकड)
● सर्वौषधि ( मुरा,जटामासी,वच,कुष्ठ, शिलाजीत,हल्दी,और दारुहल्दी,सठी,चम्पक,मुक्ता)
● सुपारी, गंध, इत्र , यज्ञोपवीत , वस्त्र उपवस्त्र , पान, इलाइची, लॉन्ग, चन्दन ,
● जटा वाला नारियल
● अक्षत (साबुत चावल)
● लाल वस्त्र
● पुष्प (फ़ूल)
अन्य सामग्री धूप, दीप, अगरबत्ती,फल , नैवैद्य आदि

कलश स्थापना विधि

सर्वप्रथम कलश मे रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बना कर गले में तीन धागा वाली कलावा लपेटे और कलश को एक तरफ रख ले कलश स्थापित किए जाने वाली भूमि पर रोली से अष्टदल कमल बना कर उस भूमि का स्पर्श करें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ भूरसि भूमिरस्त्यदितिरसि विश्‍वधाया विश्‍वस्य भुवनस्य धर्त्री ।पृथिवी यच्छ पृथिवीं दृ हं पृथिवीं मा हि सीः ॥

इसकेबाद इस पूजन पृथ्वी पर सप्तधान्य रख दे और इस धरने पर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर कलश की स्थापना करें
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः । पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्त्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः ॥
अब कलशमें जल डालें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें

ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ॥
इसके बाद कलश में चंदन डालें और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें –
ॐ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत ॥
अब कलशमें सर्वौषधि छोड़ें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ या ओषधीः पुर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा । मनै नु ब्रभूणामह शतं धामानि सप्त च ॥
अब कलश में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दूब डालें
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती पर्हः परुषसप्रि ।एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्त्रेण शतेन च ॥
इसके उपरांत निम्न मंत्र से कलशपर पञ्चपल्लव रखें‌
ॐ अश्‍वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता ।गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए कलश में कुश डालें
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ॥
अब कलश में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सात स्थानों की मिट्टी डालें
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी ।यच्छा नः शर्म सप्रथाः ।
इसके बाद कलश में सुपारी छोड़े और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्‍च पुष्पिणीः ।बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः ॥
इसके बाद अगर सामर्थ्य हो तो कलश में पंचरत्न डालें अन्यथा पंचरत्न की जगह चावल छोड़ें
ॐ परि वाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् ।दधद्रत्‍नानि दाशुषे ।
अब कलश में द्रव्य के रूप में कुछ सिक्के डालें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर कलशको वस्त्रसे अलंकृत करे-
ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः ।वासो अग्ने विश्‍वरूप सं व्ययस्व विभावसो ॥
अब निम्न मंत्र से कलशपर पूर्णपात्र रखें
ॐ पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत । वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज शतक्रतो ॥
पूर्ण पात्र परपर लाल कपड़ा लपेटे हुए नारियलको निम्न मन्त्र पढ़कर रखे – और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्‍च पुष्पिणीः । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः ॥
अब कलशमें देवि-देवताओंका आवाहन करना चाहिये ।सबसे पहले हाथमें अक्षत और पुष्प लेकर निम्नलिकित मन्त्रसे वरुणका आवाहन करे-
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश स मा न आयुः प्रमोषीः ॥
अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गः सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि ।ॐ भूर्भुवः स्व भो वरुण ।इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण ।’ॐ अपां पतये वरुणाय नमः’
यह कहकर अक्षत-पुष्प कलशपर छोड़ दे ।
फिर हाथमें अक्षत-पुष्प लेकर चारों वेद एवं अन्य देवी-देवताओंका आवाहन करेऔर निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुदः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ॥
आयान्तु देवपूजार्थे दुरितक्षयकारकाः ।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ॥

इस तरह जलाधिपति वरुणदेव तथा वेदों, तीर्थों, नदों, नदियों, सागरों, देवियों एवंदेवताओंके आवाहनके बाद हाथमें अक्षत-पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्रसे कलशकी प्रतिष्ठापना करे-
प्रतिष्ठापना –
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु ।विश्‍वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥कलशे वरुनाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ।
यह कहकर अक्षत-पुष्प कलशके पास छोड़ दे । इसके वाद सुविधा नुसार कलश की पंचोपचार या शोडषोचार विधि से पुजा करे।

कलश स्थापाना के बाद शोडषोपचार पूजा विधि

कलश स्थापना के बाद कलश की षोडशोपचार विधि से पूजा निम्न प्रकार करें सबसे पहले हाथ में पुष्प लेकर वरुण देवता का ध्यान करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि ।
(पुष्प समर्पित करे ।)
आसन के लिए अक्षत रखे
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से कलश पर जल चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
निम्नलिखित बंद करें कलर्स पर जल से अर्घ्य दें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से कलश को जल से स्नान कराएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि ।
इसके बाद आचमन के लिए कलर्स पर जल गिराए और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से पंचामृत से स्नान कराएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र से गंधक स्नान कराएं (जलमें मलयचन्दन मिलाकर स्नान कराये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र से शुद्ध जल से स्नान कराएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से आचमन कराएं(आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, वस्त्रं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से फिर से आचमन के लिए जल चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र से यज्ञ पवित्र समर्पित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि
फिर से आचमन करायें
 ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से उप वस्त्र समर्पित करें(उपवस्त्र चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, उपवस्त्रं (उपवस्त्रार्थे रक्‍तसूत्रम् ) समर्पयामि ।
फिर से आसमान कराएं (आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से कलश पर चंदन लगाएं

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, चन्दनं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से कलश पर अक्षत चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, अक्षतान्‌ समर्पयामि ।
अब निम्नलिखित मंत्र से पुष्प पुष्प माला आदि चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, पुष्पं (पुष्पमालाम्) समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए विभिन्न प्रकार के द्रव्य आदि समर्पित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से सुगंधित द्रव्य चढ़ाएं (इत्र आदि) चढ़ाये ।
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से धूप समर्पित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दीपक दिखाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, दीपं दर्शयामि ।
इसके बाद हाथ धो ले
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए नैवेद्य निवेदित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, सर्वविधं नैवेद्यं निवेदयामि ।
नैवेद्य निवेदन के पश्चात आचमन के लिए जल समर्पित करें और मुख और हस्त प्रक्षालनके लिए जल चढ़ाये
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं, मध्ये पानीयं जलम, उत्तरापोऽशने, मुखप्रक्षालनार्थे, हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से(करोद्वर्तनके लिये गन्ध समर्पित करे ।)

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, करोद्वर्तनं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से पान चढ़ाएं (सुपारी, इलायची, लौंगसहित पान चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, ताम्बूलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से (द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।
अब आरती करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से दोनों हाथों को जोड़कर के पुष्पांजलि समर्पित करें
पुष्पाञ्जलि – ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से प्रदक्षिणा करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
अब हाथमें पुष्प लेकर इस प्रकार प्रार्थना करे –
प्रार्थना –
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः ।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्‍वेदेवाः सपैतृकाः ॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः ।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव ।
सांनिध्य कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्‍वेतहाराय सुमङ्गलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ॥
‘ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।’
इसके पश्चात निम्नलिखित मंत्र से नमस्कारपूर्वक पुष्प समर्पित करे
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि ।
अब हाथमें जल लेकर निम्नलिखित वाक्यका उच्चारण कर जल कलशके पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म भगवान् वरुणदेवको निवेदित करे-
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम ।
इस प्रकार कलश स्थापना षोडशोपचार विधि सहित संपूर्ण होती है तत्पश्चात इसी तरह षोडशोपचार से दुर्गा देवी की भी पूजा करें और अंत में आरती करके प्रसाद वितरण करें।।

नव रात्रि 2022 ( 26 सितंबर से 04 अक्टूबर)

नवरात्रि पर्व 2022 ( 26 सितम्बर से 04 अक्टूबर तक)

देवी भागवत में नवरात्रों का विशेष वर्णन है। ये नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होकर नवमी तक होते हैं। प्रचलन में वर्ष में दो नवरात्रि होते हैं, चैत्र नवरात्रि जिनको वासंती नवरात्रि भी कहते हैं और दूसरे आश्विन नवरात्रि जिनको शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं । दोनों ही नवरात्रों में लोग व्रत पूजा उपवास करते हैं । इनके अलावा प्रत्येक वर्ष मे दो गुप्त नवरात्रि भी होते हैं जिनके वारे मे सामान्य जनो को कम ही मालूम होता है । ये गुप्त नवरात्रि आषाढ शुक्ल प्रतिपदा और माघ शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होते है । आइए आज मैं आपको नवरात्रों के बारे में बताता हूं कि किस तरह से सरल और सुविधा पूर्वक नवरात्रि करने चाहिए

नवरात्रि का अर्थ है नव रात्रि इस लिए नौ रात्रि तक व्रत करने से नवरात्र व्रत पूर्ण होता है। अगर नवरात्रों में कोई तिथि घटती, बढ़ती है तो उससे व्रत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।

प्रतिपदा तिथि को नवरात्रिओं का आरंभ होता है। अगर इस दिन चित्रा नक्षत्र या वैधृति योग हो तो इनके समाप्त होने के बाद ही व्रत का आरंभ करना चाहिए। परंतु देवी का आवाहन ,स्थापन और विसर्जन यह तीनों प्रातः काल में होते हैं। अतः यदि चित्रा या वैधृति योग ज्यादा समय तक हो तो इसी दिन अभिजीत मुहूर्त में व्रत आरंभ करना चाहिए। वैसे तो शारदीय नवरात्रि में शक्ति की उपासना का प्रावधान है और वासंती नवरात्रों में विष्णु की उपासना का प्रावधान है, किंतु यह दोनों ही बहुत व्यापक हैं। इसलिए दोनों में दोनों की ही उपासना होती है। इनमें किसी वर्ण विधान या देवी की भिन्नता नहीं है। सभी वर्ण अपने अभीष्ट की उपासना करते हैं। अगर सामर्थ्य नहीं हो तो कुछ लोग प्रतिपदा से सप्तमी तक सप्त रात्र कर सकते हैं ।अन्यथा पंचमी को एक वक्त , षष्टि को नक्त व्रत और सप्तमी को अयाचित व्रत, अष्टमी को उपवास और नवमी को पारण यह पंचरात्र भी कर सकते हैं, दूसरा उपाय सप्तमी अष्टमी और नवमी के एक भक्त व्रत से त्रिरात्र व्रत कर सकते हैं अथवा आरंभ और समाप्ति के दो व्रतो से युग्म रात्रि भी कर सकते हैं या आरंभ या समाप्ति के एक वृत्त से एक रात्रि के रूप में भी अगर नवरात्र किए जाएं, उन्हें भी अभीष्ट की सिद्धि होती है। व्रत के अलावा अलग अलग परम्पराओ के अनुसार राम चरित मानस नवाह्न पारायण पाठ, देवी भागवत पाठ, गीता पाठ, दुर्गा शप्त शती पाठ आदि किये जा सकते हैं । इन सभी से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि कैसे करें

सर्वप्रथम प्रतिपदा के दिन अपने घर के किसी शुभ स्थान में मिट्टी से वेदी बनाकर उस पर जौ बो दे, उसके ऊपर अगर सामर्थ्य हो तो सोने, तांबे, पीतल या मिट्टी का कलश स्थापित करें। कलश स्थापना की विधि अलग से दे रहा हूं। इस कलश पर सोना चांदी तांबा मिट्टी या प्रसारण की चित्र में मूर्ति की प्रतिष्ठा करें अगर मूर्ति ना हो तो दुर्गा का त्रिशूल आदि बनाकर के पूजन करें। सर्वप्रथम नवरात्रि व्रत आरंभ करते समय गणपति, सप्त मातृका , नव ग्रह और वरुण का पूजन, स्वस्तिवाचन आदि करके मुख्य मूर्ति या चित्र जो रामकृष्ण ,लक्ष्मी नारायण या भगवती या दुर्गा देवी जिसका भी हो श्रद्धा से , उसकी वेद विद्या पद्धति से या अपने संप्रदाय विधान से पूजा करें।देवियों के नवरात्रि में महाकाली महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा सप्तशती का पाठ मुख्य है। यदि पाठ करना हो तो दुर्गा सप्तशती की पुस्तक का पूजन करके एक पाठ तीन पाठ या पांच पाठ करने चाहिए और पाठ में विशेष ब्राह्मण हो तो उनकी संख्या १,३,५ रखनी चाहिए।

दुर्गा सप्तशती के पाठ की संख्या निम्न प्रकार रखनी चाहिए

फल सिद्धि के लिए एक पाठ
उपद्रव शांति के लिए तीन पाठ
भय से छूटने के लिए सात पाठ
यज्ञ फल की प्राप्ति के लिए नौ पाठ
राज्य के लिए 11 पाठ
कार्य की सिद्धि के लिए 12 पाठ
किसी को वस में करने के लिए 14 पाठ
सुख संपत्ति के लिए 15 पाठ
धन और पुत्र के लिए 16 पाठ
शत्रु रोग और राजा के भय से छूटने के लिए 17 पाठ
प्रिय की प्राप्ति के लिए 18 पाठ
बुरे ग्रहों के दोष की शांति के लिए 20 पाठ
बंधन से मुक्त होने के लिए 25 पाठ और मृत्यु के भय से बचाने के लिए, अभीष्ट वस्तु की सिद्धि एवं लोकोत्तर लाभ के लिए आवश्यकता अनुसार सौ ,हजार ,दस हजार और लाख तक पाठ करने चाहिए।

नवरात्रों में कुमारी पूजन

नवरात्रों में कुमारी पूजन भी बहुत ही आवश्यक माना गया है, अगर कुमारी पूजन रोज संभव ना हो , तो नवरात्रि के समाप्ति वाले दिन कुमारी 9 कन्याओं के चरण धोकर, उनकी गंध पुष्प आदि से पूजा करके मिष्ठान्न भोजन कराना चाहिए। एक कन्या के पूजन से ऐश्वर्य की प्राप्ति, दो कन्या के पूजन से भोग और मोक्ष की, तीन कन्याओं के पूजन से धर्म अर्थ काम आदि की प्राप्ति, चार कन्याओं के पूजन से राज्य पद की ,पांच कन्याओं के पूजन से विद्या की प्राप्ति, छह कन्याओं का पूजन से षटकर्मसिद्धि की प्राप्ति, सात कन्याओं के पूजन से राज्य की, आठ कन्याओं के पूजन से संपदा की, नौ कन्याओं के पूजन से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है ।

स्कंद पुराण के अनुसार नौ वर्ष की उम्र से अधिक की कन्या को कुमारी पूजन में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। अर्थात अत ऊर्ध्वम तु याः कन्याः सर्वकार्येषु वर्जिताः । इस प्रकार 9 दिनों तक नवरात्र करके दशमी के दिन या लोकाचारानुसार दशांश का हवन, ब्राह्मण भोजन और व्रत का विसर्जन करें। इस प्रकार नवरात्रि करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

विवाह मुहूर्त 2022

विवाह शुभ मुहूर्त

हमारे जीवन में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। भारतीय संस्कृति में हमारा जीवन चार आश्रमों में विभाजित है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास । इन चारों आश्रमों का मुख्य आधार गृहस्थाश्रम है और गृहस्थ आश्रम का मुख्य आधार विवाह है|  बिना विवाह संस्कार के गृहस्थ  आश्रम की कल्पना भी नहीं की जा सकती ,क्योंकि गृहस्थ आश्रम संतान सिद्धि के लिए मुख्य आश्रम है।  इसलिए विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष विचार किया जाता है।

विवाह संस्कार के लिए हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऋषि-मुनियों ने कुछ नियम निर्धारित किए थे। जो अधिकांश  आज भी  प्रचलित हैं । परंतु उनमें से  कुछ नियम देशकाल, वातावरण के अनुसार परिवर्तित किए गए  हैं ।जैसे कि वर और कन्या की विवाह योग्य कानूनी आयु  भारतवर्ष में 18 साल निर्धारित है। जबकि हमारे प्राचीन ग्रंथों में विवाह योग्य उम्र लड़की के लिए 6 बरस से 12 है ।. यह आयु आज के युग में तर्कसंगत नहीं है । आज, जब लड़का लड़की विद्या अध्ययन पूर्ण करने पर विवाह के योग्य हो जाएं तब माता-पिता  अपने कुल की परंपरा के अनुरूप लड़की के लिए के लिए  सुयोग्य  वर का वरण करें।

आजकल पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण वैवाहिक जीवन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है   इसका कारण यही है कि अपनी वैदिक परंपरा अनुसार  विवाह का  तय ना होना। अगर सुखी वैवाहिक जीवन चाहिए तो हर शादी तय करने से पहले विद्वान ज्योतिषियों से वर कन्या की जन्म कुंडली का मिलान करवा लेना चाहिए। जन्म कुंडली में सभी शुभाशुभ योगों पर ध्यान देना चाहिए और वर्ण आदि   अ‍ॅष्टकूट तथा राशियों के शुभाशुभ योग देख कर अंतिम निर्णय लेना चाहिए ।उसके बाद ही शादी तय करनी चाहिए। अर्थात वागदान मुहूर्त (अर्थात वाणी द्वारा संकल्प) सगाई  जिसे रोका भी कहते हैं, करना चाहिए।

 सगाई मुहूर्त

सगाई निम्नलिखित नक्षत्रों में    शुभ वार शुभ, लग्न शुभ मुहूर्त में आचार्य/ पुरोहित, कन्या के पिता, भाई या अभिभावकों से गणेश आदि पूजन कराके कुमकुम केसर से वर का तिलक करें। मौली रक्षा सूत्र बांधेन ।  श्री फल नारियल , मिठाई, पुष्प माला ,वस्त्र ,आभूषण देकर के सम्मानित करें।

सगाई के लिए शुभ नक्षत्र 

अश्विनी ,कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा,    मघा, पू फा , उ फल्गुनी ,  हस्त,  चित्रा,  स्वाती, अनुराधा,मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ , श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, और रेवती  । ये सभी नक्षत्र   शुभ सयोंगो से योक्त होने चाहिये ।  सगाई होने के बाद वर पक्ष भी कन्या का वरण करें अर्थात कन्या की गोद भरे। इसके उपरांत विवाह के लिए मुहूर्त चयन कराएं।

विवाह के लिये शुभ महीने 

वैशाख ,ज्येष्ठ ,आषाढ़, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ, और  फाल्गुन।  यह माह  शुभ माने गए हैं।  चैत्र और पौष को छोड़कर अन्य सभी  महीनों में विवाह होते हैं।

कुछ वर्गों को छोड़ कर के देव शयन चातुर्मास में अर्थात आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक विवाह नहीं होते परंतु सिंध , पंजाब, कश्मीर, हिमाचल आदि प्रांतों में इन 4 महीनो  में भी विवाह होते हैं।

विवाह के लिए शुभ नक्षत्र

मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रोहिणी ,हस्त, रेवती, स्वाति, मघा,  उत्तराफाल्गुनी , उत्तराषाढ  और उत्तराभाद्रपद।   यह 11 नक्षत्र विवाह के लिए सर्वमान्य हैं ।  इसके अलावा यजुर्वेदियों के लिए अश्वनी, चित्रा,  श्रवण और  धनिष्ठा ये चार  नक्षत्र भी शुभ माने गए हैं । अतः विवाह के लिए कुल  उपर्युक्त 15 नक्षत्र ही शुभ है।

विवाह मुहूर्त चयन करते समय 10 महा दोषों का ध्यान रखा जाता है। यह 10 महादोष हैं

लतादोष,  पातदोष , युतिदोष , वेधदोष , जामित्र दोष  बाणदोष और एकार्गलदोष ,उपग्रह दोष ,क्रांतिसाम्य , महापात और दग्धा तिथि

इन दोषो में  वेध दोष ,  मृत्यु वाण और क्रांति साम्य ये तीन महा दोष सर्वथा वर्जित है।  शेष 7 में से चार दोष भी रहने पर विवाह मुहूर्त की लग्न शुद्धि करने से दोष नष्ट हो जाते हैं।

अब मैं विवाह मुहूर्त की सन 2022 की दिनांक नीचे लिख रहा हूं।

यह सभी दिनांक शुभ विवाह मुहूर्त के लिए हैं ,परंतु यह ध्यान रहे की इनमें से कोई विशेष दिनांक चुनने के बाद उसका त्रिबल शुद्धि अपने योग्य ज्योतिषी द्वारा अवश्य  कराएं । त्रिबल  शुद्धि वर और कन्या की जन्म राशि के अनुसार की जाती है। त्रिबल शुद्धि के बाद ही शादी की तारीख निश्चित करें ।त्रिबल शुद्धि कराने के लिए आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके उचित दिनांक तय कर सकते हैं।

 शुभ विवाह मुहूर्त :  2022

नवंबर और दिसंबर 2022 के विवाह मुहूर्त  

क्रमांकदिनांकवारहिंदी महीना पक्ष और तिथिनक्षत्रविवाह मुहूर्त की शुद्धता प्रतिशत में
123/11/ 23गुरुवारकार्तिक शुक्ल एकादशीउ भा.70%
224/11/ 23शुक्रवारकार्तिक शुक्ल द्वादशीअश्विनी60%
327/11/ 23सोमवारकार्तिक शुक्ल पूर्णिमारोहिणी70%
428/11/ 23मंगलवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदारोहिणी80%
529/11/ 23बुधवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीयामृगशिरा80%
603/12/23रविवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष ६मघा70%
704/12/23सोमवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष ७मघा60%
807/12/23गुरुवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष १०हस्त70%
908/12/23शुक्रवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष ११चित्रा70%
1009/12/23शनिवारमार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष १२चित्रा80%

नोट:;  इन  इन मुहूर्त के अतिरिक्त अन्य महूरत भी आपको विभिन्न पंचांगो,  चैनलों,  वेबसाइट आदि पर मिल जाएंगे। परंतु हमारे अनुसार वह सभी मुहूर्त उपर्युक्त मानदंडों  से अलग मानदंडों   द्वारा निर्धारित किए गए होंगे। हमारे अनुसार उपर्युक्त विवाह महुर्त पुर्णत शुद्ध हैं । इसलिए शादी जैसे पवित्र संस्कार के लिए पूर्णता शुद्ध विवाह महुरतो  का उपयोग करने में ही समझदारी है, पूर्णत शुभ विवाह मुहूर्त में शादी करने पर वैवाहिक जीवन बहुत ही आनंदमय  रहता है।

 

Shradh 2022 Dates: आज से पितृ पक्ष शुरू ? जानें महत्व और श्राद्ध की संपूर्ण तिथियां

प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में श्राद्ध पक्ष मनाया जाता है। इस वर्ष 10 सितंबर को भाद्रपद शुक्ल पूर्णमासी से पितर पक्ष का आरंभ हो रहा है , जोकि 25 सितंबर 2022 रविवार आश्विन कृष्ण अमावस्या तक जारी रहेगा । पितर पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। उन्हें उनकी तिथि के अनुसार, जिन तिथियों में पूर्वजों का देहावसान हुआ है, उन्हीं तिथियों में श्राद्ध करने का विधान है। आज मैं आपको श्राद्ध के बारे में उन पहलुओं से अवगत कराउंगा जो बहुत ही आवश्यक और जरूरी है । तो आइए जानते हैं श्राद्ध के बारे में शास्त्रीय विधि जिसका पालन करके आप इस विधि से अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं।

श्राद्ध करने की आसान विधि

सर्वप्रथम पितृपक्ष के दिनों में सुबह उठकर देवस्थान और पितृ स्थान को साफ करके या गाय के गोबर से लिप कर या गंगाजल से पवित्र करें। आजकल कच्चे घर ना होने के कारण घर को धो करके साफ करें और गाय का पेशाब से छींटे लगाएं। और गंगाजल से पवित्र करें। घर को रंगोली आज से सजाएं। महिलाएं नहा धोकर के शुद्ध होकर के पितरों के लिए भोजन बनाएं ।

श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण होता है जो गायत्री संध्या वंदन करता हो । ऐसे ब्राह्मण को श्राद्ध के लिए निमंत्रण दे करके बुलाया जाय | ब्राह्मणों से पितरों की पूजा और तर्पण भी कराएं। गाय कुत्ता और अतिथि के लिए भोजन के चार ग्रास निकाले । ब्राह्मण को आदर पूर्वक भोजन कराएं | मुख शुद्धि वस्त्र दक्षिणा से सम्मान करें। हां एक बात जरूरी है ब्राह्मण को श्राद्ध का खाना मौन होकर खाना चाहिए और ब्राह्मण से आप कभी ना पूछें, खाना कैसा बना है या खाने का स्वाद कैसा है। यह पूछना निषेध है ।

घर में किए गए श्राद्ध का पुण्य, तीर्थ में किए हुए श्राद्ध से कई गुना अधिक मिलता है अगर किसी कारण वस या अन्य कारणों से कोई व्यक्ति श्राद्ध नहीं कर पाता है तो वह प्रत्येक दिन गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और उस पाठ के फल को अपने पितर के प्रति समर्पित कर दें। तिलांजलि देने से भी श्राद्ध का फल मिलता है।

यदि किसी भी प्रकार से श्राद्ध करना अगर संभव ना हो तो किसी एकांत स्थान पर जाकर दोपहर के समय सूर्य की ओर दोनों हाथ उठाकर अपने पूर्वजों और सूरज से प्रार्थना करना चाहिए कि हे प्रभु मैं अपने हाथ आपके समक्ष फैला दिया हूं। मैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए आपसे प्रार्थना करता हूं कि मेरे पितर मेरी श्रद्धा भक्ति से संतुष्ट हो| ऐसा करने से व्यक्ति को पित्र ऋण से मुक्ति मिल जाती है।

श्राद्ध करने से देवता और पितर तृप्त होते हैं और श्राद्ध करने वाले का हृदय भी तृप्ति संतुष्टि का अनुभव करता है| बूढ़े बुजुर्गों ने हमारी उन्नति के लिए बहुत कुछ किया है तो उनकी सद्गति के लिए हम भी कुछ करेंगे तो हमारे हृदय में भी संतुष्टि का अनुभव होगा।
गरुण पुराण में श्राद्ध महिमा
समय अनुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु सुख और धन प्राप्त करता है।

सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर 2022 रविवार 

सर्वपितृ अमावस्या का बहुत ही महत्व है। इस अमावस्या के दिन अपने पितरों को अवश्य भोजन देना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितृगण हवा के रूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं। और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं| जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता तब तक वे भूख प्यास से व्याकुल होकर वही खड़े-खड़े इंतजार करते रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के बाद वे निराश होकर दुखी मन से अपने अपने लोकों को चले जाते हैं| इसलिए अमावस्या के दिन प्रयत्न पूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

यदि पितृ जनों के पुत्र तथा बंधु बांधव उनका श्राद्ध करते हैं और गया तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं। तो भी उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्म लोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं| उन्हें भूख प्यास कभी नहीं लगती । इसलिए विद्वान व्यक्ति को प्रयत्न पूर्वक जैसा संभव हो श्रद्धा के साथ अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए और सर्वपितृ अमावस्या के दिन तो सभी पितरों को अवश्य याद करके उनको तिलांजलि आदि देनी चाहिए। इससे पितर गण अवश्य ही तृप्त होते है और आशीर्वाद देते हैं ।

इस वर्ष 2022 में होने वाले श्राद्ध की सूची निम्न प्रकार है | Pitru Paksha shradh 2022 dates in hindi

पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां:

  • पूर्णिमा का श्राद्ध 10 सितंबर 2022
  • प्रतिपदा का श्राद्ध 11 सितंबर 2022
  • द्वितीय का श्राद्ध 12 सितंबर 2022
  • तृतीया का श्राद्ध 12 सितंबर 2022
  • चतुर्थी का श्राद्ध 13 सितंबर 2022
  • पंचमी का श्राद्ध 14 सितंबर 2022
  • षष्ठी का श्राद्ध 15 सितंबर 2022
  • षष्ठी का श्राद्ध 16 सितंबर 2022
  • सप्तमी का श्राद्ध 17 सितंबर 2022
  • अष्टमी का श्राद्ध 18 सितंबर 2022
  • नवमी का श्राद्ध 19 सितंबर 2022
  • दसवीं का श्राद्ध 20 सितंबर 2022
  • एकादशी का श्राद्ध 21 सितंबर 2022
  • द्वादशी का श्राद्ध 22 सितंबर 2022
  • त्रयोदशी श्राद्ध 23 सितंबर 2022
  • चतुर्दशी श्राद्ध 24 सितंबर 2022

अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, पितर विसर्जन भूले बिछड़े का 25 सितंबर 2022

 

List of Ekadashi Vrat 2022: साल 2022 में कब-कब है एकादशी व्रत, यहाँ देखें पूरी लिस्ट

List of Ekadashi Vrat 2022 –23 इस वर्ष 2022-2023 के हिन्दी कैलेंडर अनुसार पहली एकादशी तिथि 13 जनवरी को पड़ रही है। जिसका नाम पुत्रदा एकादशी है। यह पौष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी है उसके बाद 28 जनवरी, 2022 को माघ कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी है। और सालभर में एक बार आने वाली सबसे प्रसिद्ध ज्येष्ठ महीने की निर्जला एकादशी का व्रत 10 जून, 2022 को किया जायेगा। इसके अलावा पूरे साल में किस महीने में कौन-सी एकादशी का व्रत है इसकी पूरी जानकारी  आचार्य राम हरी शर्मा  जी ने आप के   लिए एक सूची  तैयार की है। जिसमे आपको  आगे आने वाली  सभी एकादशी तिथियां :- दिनांक, दिन, एकादशी व्रत का नाम, पक्ष, मास और तिथि प्रारम्भ व समाप्त होने का समय के क्रम में नीचे दी जा रही है।

क्रमांक(एकादशी की तारीख)(एकादशी व्रत का नाम)(एकादशी तिथि का समय)
113 जनवरी, 2022पुत्रदा एकादशी व्रतप्रारम्भ – 04:49 PM, Jan 12
(गुरुवार )(शुक्ल पक्ष – पौष मास)समाप्त – 07:32 PM, Jan 13
228 जनवरी, 2022षटतिला एकादशीप्रारम्भ – 02:16 AM, Jan 28
(शुक्रवार)(कृष्ण पक्ष – माघ मास)समाप्त – 11:35 PM, Jan 28
312 फरवरी, 2022जया एकादशीप्रारम्भ – 01:52 PM, Feb 11
(शनिवार)(शुक्ल पक्ष – माघ मास)समाप्त – 04:27 PM, Feb 12
426 फरवरी, 2022विजया एकादशीप्रारम्भ – 10:39 AM, Feb 26
(शनिवार)(कृष्ण पक्ष – फाल्गुन मास)समाप्त – 08:12 AM, Feb 27
514 मार्च, 2022आमलकी एकादशीप्रारम्भ – 10:21 AM, Mar 13
(सोमवार)(शुक्ल पक्ष – फाल्गुन मास)समाप्त – 12:05 PM, Mar 14
628 मार्च, 2022पापमोचिनी एकादशीप्रारम्भ – 06:04 PM, Mar 27
(सोमवार)(कृष्ण पक्ष – चैत्र मास)समाप्त – 04:15 PM, Mar 28
712 अप्रैल, 2022कामदा एकादशीप्रारम्भ – 04:30 AM, Apr 12
(मंगलवार)(शुक्ल पक्ष – चैत्र मास)समाप्त – 05:02 AM, Apr 13
826 अप्रैल, 2022वरूथिनी एकादशीप्रारम्भ – 01:37 AM, Apr 26
(मंगलवार)(कृष्ण पक्ष – वैशाख मास)समाप्त – 12:47 AM, Apr 27
912 मई, 2022मोहिनी एकादशीप्रारम्भ – 07:31 PM, May 11
(बृहस्पतिवार)(शुक्ल पक्ष – वैशाख मास)समाप्त – 06:51 PM, May 12
1026 मई, 2022अपरा एकादशीप्रारम्भ – 10:32 AM, May 25
(बृहस्पतिवार)(कृष्ण पक्ष – ज्येष्ठ मास)समाप्त – 10:54 AM, May 26
1110 जून, 2022निर्जला एकादशीप्रारम्भ – 07:25 AM, Jun 10
(शुक्रवार)(शुक्ल पक्ष – ज्येष्ठ मास)समाप्त – 05:45 AM, Jun 11
1224 जून, 2022योगिनी एकादशीप्रारम्भ – 09:41 PM, Jun 23
(शुक्रवार)(कृष्ण पक्ष – आषाढ़ मास)समाप्त – 11:12 PM, Jun 24
1310 जुलाई, 2022देवशयनी एकादशीप्रारम्भ – 04:39 PM, July 09
(रविवार)(शुक्ल पक्ष – आषाढ़ मास)समाप्त – 02:13 PM, July 10
1424 जुलाई, 2022कामिका एकादशीप्रारम्भ – 11:27 AM, July 23
(रविवार)(कृष्ण पक्ष – श्रावण मास)समाप्त – 01:45 PM, July 24
1508 अगस्त, 2022श्रावण पवित्रा एकादशी सर्वेषांप्रारम्भ – 11:50 PM, Aug 07
(सोमवार)(शुक्ल पक्ष – श्रावण मास)समाप्त – 09:00 PM, Aug 08
1622 अगस्त, 2022अजा एकादशीप्रारम्भ – 03:35 AM, Aug 21
(मंगलवार)(कृष्ण पक्ष – भाद्रपद मास)समाप्त – 06:07 AM, Aug 23
1706 सितम्बर, 2022पद्मा (परिवर्तिनी) एकादशीप्रारम्भ – 05:54 AM, Sep 06
(मंगलवार)(शुक्ल पक्ष – भाद्रपद मास)समाप्त – 03:04 AM, Sep 07
1821 सितम्बर, 2022इन्दिरा एकादशीप्रारम्भ – 09:26 PM, Sep 20
(बुधवार)(कृष्ण पक्ष – आश्विन मास)समाप्त – 11:34 PM, Sep 21
1906 अक्टूबर, 2022पापांकुशा एकादशीप्रारम्भ – 12:00 PM, Oct 05
(बृहस्पतिवार)(शुक्ल पक्ष – आश्विन मास)समाप्त – 09:40 AM, Oct 06
2021 अक्टूबर, 2022रमा एकादशीप्रारम्भ – 04:04 PM, Oct 20
(शुक्रवार)(कृष्ण पक्ष – कार्तिक मास)समाप्त – 05:22 PM, Oct 21
2104 नवम्बर, 2022देवउठनी /प्रबोधिनी एकादशीप्रारम्भ – 07:30 PM, Nov 03
(शुक्रवार)(शुक्ल पक्ष – कार्तिक मास)समाप्त – 06:08 PM, Nov 04
2220 नवम्बर, 2022उत्पत्ति  एकादशीप्रारम्भ – 10:29 AM, Nov 19
(रविवार)(कृष्ण पक्ष – मार्गशीर्ष मास)समाप्त – 10:41 AM, Nov 20
2303 दिसम्बर, 2022मोक्षदा एकादशीप्रारम्भ – 05:39 AM, Dec 03
(शनिवार)(शुक्ल पक्ष – मार्गशीर्ष मास)समाप्त – 05:34 AM, Dec 04
2419 दिसम्बर, 2022सफला एकादशीप्रारम्भ – 03:32 AM, Dec 19
(सोमवार)(कृष्ण पक्ष – पौष मास)समाप्त – 02:32 AM, Dec 20

 

राम नवमी: आखिर क्यों? नौवा दिन राम अवतार के रूप में मनाया जाता है..

हिन्दू धर्म मे शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो भगवान राम के नाम से परिचित न हो. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ने आम व्यक्ति के लिये जो आदर्श रखे है वे अलौकिक हैं और हो भी क्यों न, क्योंकि परम ब्रह्म परमेश्वर के सभी कार्य दिखने में भले ही सधारण लगें परन्तु वे होते अलौकिक ही हैं त्रेता युग मे उस समय आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ गया था, जन मानस मे राक्षसों का भय व्याप्त था ऐसे समय मे भग्वान राम ने सज्जन पुरुषो की रक्षा के लिये , धर्म की स्थापना के लिये अवतार ग्रहण किया था. गीता में स्वयं भग्वान ने अपने मुख से कहा है”

यदायदाहिधर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः.
अभ्युथानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्ह्यम.

परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुस्कृताम.
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे.”

अर्थात जब जब भारत में धर्म की हानि तथा अधर्म का बढावा हो जाता है तब तब धर्म के अभ्युथान के लिये एवम साधु पुरुषों की रक्षा के लिये युग युग मे अवतार लिया करता हूं

गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस की रचना करके जन मानस के लिये उस परम ब्रह्म परमेश्वर से साक्षात्कार करने का सबसे आसान तरीका बताया है,राम चरित मानस की महिमा तो उत्तर भारत मे ही नही वरन पूर्ण संसार में सर्व विदित है.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी के दिन मध्यान्ह मे 12 बजे हुआ था उस समय सुन्दर वसन्त रितु तथा न ज्यादा गरमी न ज्यादा सर्दी ही थी, यथा राम चरित मानस में कैसा सुन्दर वर्णन है ”

नौमी तिथि मधु मास पुनीता. सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता.
मध्य दिवस अति शीत न घामा . पावन काल लोक बिश्रामा,
शीतल मंद सुरभि बह बाऊ . हरषित सुर सन्तन मन चाऊ,
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा. स्रवहिं सकल सुर साजि बिमाना.”

एक तो राम नवमी नवरात्रों से जुडी होने के कारण अति महत्वपूर्ण है, दूसरे चैत्र मास से नवसंवत्सर की शुरुआत होती है अतः नव वर्ष के प्रथम दिन से ही देवी नव्रात्रो का आरम्भ, जगह जगह, घर घर देवी की भजन कीर्तनो का समायोजन आदि से लगता है कि उस आद्य परम शक्ति परम ब्रह्म परमेश्वर के अवतार के आगमन का स्वागत नवरात्रों के रूप मे हो रहा है. और नवें दिन राम अवतार के रूप मे मनाया जा ता है.

राम नवमी के पीछे पौराणिक कथा है

राम नवमी के पीछे पौराणिक कथा है कि जब राक्षसों ने पृथ्वी पर त्राहि त्राहि मचा रखी थी चारों तरफ पाप ही पाप फ़ैल रहा था सज्जन और साधु पुरुषों को राक्षस खा जाते थे उस समय रावण राक्षसों का अधिपति बना हुआ था. इन सभी अत्याचारों से तंग आकर पृथ्वी ब्रह्मा जी के पास गई और ब्रह्मा जी को अपनी व्यथा सुनाई.

ब्रहमा जी पृथ्वी तथा सभी देवों के साथ भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर पहुचे और तथा पृथ्वीवासियों की स्थिति से अवगत कराया और प्रार्थना की कि भगवन अब धरा पर धर्म का लोप हो गया है , अब समय आ गया है कि आप अवतार लेकर सबके कष्टों का हरण करे.

भग्वान ने सभी देवो सहित पृथ्वी को आश्वस्त किया कि मैम जल्दी ही अयोध्या मे राजा दसरथ के घर अपने अंशों सहित अवतार लेकर पृथ्वी का संताप हरुगा. उसकए बाद भग्वान ने अपने दशरथ के घर चारो भाइयों के रूप अपने अंशोम सहित अवतार ग्रह्ण किया और पृथ्वी को भार मुक्त कर दिया. तभी से चैत्र शुक्ल नवमी को राम नवमी मनाई जाती है.
इस अवस्र पर कुछ लोग अखन्ड रामचरित्मानस का पाठ करते है, पाठ सम्पूर्ण होने पर राम जन्मोत्सव हर्षौल्लस से मनाते है मन्दिर और घरो को सजाते है और मन्दिरों मे भन्डारे आदि का आयोजन करते है.

ज्योतिःशास्त्र के अनुसार मनाने के विधि:

इस दिन भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की भांति प्रत्येक व्यक्ति को व्रत करना चाहिये. इसमें नवमी मध्यान्ह व्यापिनी लेनी चाहिये यदि नवमी दो दिन मध्यान्ह व्यापिनी हो या दोनो मे ने हो तो पहले वाली नवमी ग्रहण करनी चाहिये. इसमे अष्टमी का वेध तो निषेध नही परन्तु दशमी का वेध जरूर निषेध है.

यह व्रत तीन प्रकार से किया जा सकता है

  • नित्य
  • नैमित्तिक.
  • काम्य

नित्य व्रत निष्काम भावना से आजीवन किया जा सकता है इसका फल अनन्त एवम अमिट होता है और किसी निमित्त या कामना से किया जाय तो उसे क्रमशः नैमित्तिक या काम्य व्रत की संग्या दी जाती है और उसका फल भी इच्छित मिलता है जब भग्वान राम का जन्म हुआ था तव चैत्र शुक्ल नवमी , गुरुवार, पुष्य नक्षत्र मध्यन्ह तथा कर्क लग्न था ., ये सभी संयोग सदैव नही मिल सकते. अथ अगर इनमे से अधिकतर संयोग मिलते हों तो उनको ही व्रत के समय ग्रहन करना चाहिये. स्बसे महत्व पूर्ण बात है भक्ति औए बिस्वास की.

व्रत करने वाले को व्रत के एक दिन पहले ( अष्टमी के दिन ) प्रातः स्नानादि से निश्चित होकर भगवान रामचन्द्र का स्मरन करना चाहिये , दूसरे दिन चैत्र शुक्ल नवमी को ( इस वर्ष 12 अप्रैल दिन मंगल वार) नित्य कृत्य से अति शीघ्र निवॄत होकर निम्न मन्त्र द्वारा भगवान के प्रति व्रत करने की भावना प्रकट करनी चाहिये.

मन्त्र:-
ओम उपोष्य नवमी त्वद्य्यामेष्व्ष्ट्सु राघव.
तेन प्रीतो भव त्वं भो संसारात त्राहि मां हरे.”

और अगर कामना रख कर व्रत किया जा रहा है तो अपनी कामना सहित संकल्प करे, काम क्रोध और लोभ को छोद कर व्रत करे , अपने घर, मन्दिर आदि को ध्वजा , तोरण आदि से सजाये, फि पूजा के स्थान मे सर्वतोभद्रमंडल की रचना करके उसके बीच मे कलश स्थापना करे.

कलश के उपर राम पंचायतन का चित्र ( राम पंचायतन बीच मे भगवान राम और सीता जी बैठे हुये , अगल बगल में भरत और शत्रुधन खडॆ हुये तथा नीचे हनुमान जी वीरासन में बैठे हुये हो , को कह्ते है) या उसकी सुवर्ण मूर्ति स्थापित करके उनका आवाहन आदि से पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करे .

पूजनोपरान्त हवन करे और पूरे दिन भगवान राम्जे के भजन कीर्तन , गुण और चरित्रोमं का कथन करते हुये रात्रि जागरण करे. तदोपरान्त दूसरे दिन दशमी के दिन व्रत का पारन करके विसर्जन करे, फिर प्रसाद ग्रहण तथा ब्राहमणों को भोजन और दान दें और इस प्रकार प्रति वर्ष करता रहे ऐसा करने से उस भक्त विशेष पर ईश्वर की विषेश कृपा वरसती है और वह इस संसार में धर्म , अर्थ, काम प्राप्त करके अंत मे मोक्ष प्राप्त करता है इसमे संदेह नही है.

अतः प्रत्येक नर और नारी को राम नवमी का व्रत प्रयत्नपूर्वक करके सकल कामनाओं की पूर्ति सहज में ही कर लेनी चाहिये .

मेष लग्न की कुंडली में मारक ग्रह – Unfavorable Planets in Mesh Lagna

इससे पहले हमने आपको मेष लग्न में योगकारक ग्रह (Favorable Planets) के बारे में बताया था। श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम बात करते हैं मेष लग्न की कुंडली में मारक ग्रहों (Unfavorable Planets) यानि अशुभ ग्रहों की।

इस लग्न में कुल मिलाकर शुक्र और बुध दो ऐसे ग्रह है जिन्हें हम मारक कह सकते है। अगर शनि ग्रह की बात की जाएं तो वह मेष लग्न कुंडली में सम ग्रह माने जाएँगे।

शुक्र ग्रह

लग्नेश मंगल ने इस जन्म-कुंडली में शुक्र देवता को दुसरे भाव जो धन कुटुम्ब, वाणी का भाव है और सातवें भाव जिससे दाम्पत्य सुख, पार्टनरशिप आदि का विचार किया जाता हैं, का मालिक बनाया। लेकिन अष्टम से अष्टम के नियम अनुसार इस कुंडली में शुक्र अच्छे घरों का स्वामी होने के बाद भी अतिमारक ग्रह बना। इस तरह शुक्र देव इस लग्न कुंडली के अति मारक ग्रह माने जाते हैं।

बुध ग्रह

बुध देव को इस जन्मपत्रिका में तीसरे और छठे भाव का स्वामित्व प्राप्त हैं। तीसरा भाव – छोटे भाई-बहन, पराक्रम, लेखन, धैर्य, दांया कान, दायीं भुजा, मेहनत और छोटी-मोटी यात्राओं का घर माना जाता हैं । छठां भाव- रोग, ऋण-कर्जा, दुर्घटना, लड़ाई-झगड़ा आदि दोनों ही बुरे भावों के स्वामी बुध ग्रह हुए। इसलिए मेष लग्न की कुंडली में बुध देव भी मारक ग्रह बने। जब तक कोई नियम लागु नहीं होता तब तक बुध ग्रह इस लग्न में जातक के लिए अतिमारक ग्रह के परिणाम देंगे।

सम ग्रह

शनि ग्रह

मेष लग्न की पत्रिका में शनि देव 10 वें और 11 वें भाव के मालिक हैं। दशम भाव जातक का कर्म भाव हैं। जातक जैसे कर्म करेगा वैसा ही उसका भाग्य बनेगा। और 11वां भाव आय भाव कहलाता हैं दोनों ही अच्छे भाव हैं । ग्रहों के मित्र-शत्रु चार्ट के अनुशार शनिदेव लग्नेश मंगल के अतिशत्रु ग्रह माने जाते हैं। किन्तु दो अच्छे भावों का स्वामित्व होने के कारण शनिदेव इस कुंडली में सम ग्रह कहे जाते हैं, मारक ग्रह नहीं। सम ग्रह का अर्थ है – “अच्छे भाव का स्वामी किन्तु लग्नेश का अतिशत्रु”।