कलश स्थापना :
कलश स्थापना करने से पूर्व कलश स्थापना का महुर्त अवश्य देख लेना चाहिये । इस वर्ष 25 अक्टूवर 2022 को कलश स्थापना महुर्त समय निम्न समयो मे कर सकते है। निम्न समय देश की राजधानी दिल्ली के स्थानीय समय अनुसार है। अपने अपने शहरो के लिये कुछ न्युनाधिक हो सकता है वह आप चौघडिया का आरम्भ समय और समाप्ति काल इंटर नेट से प्राप्त कर सकते है।
प्रातः ०६:११ से ७ : ५१ मिनट तक ( 6:11 से 07:51 तक) दिल्ली के लिये
नवरात्र में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। सामान्य रूप से कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। घटस्थापना के दिन से नवरात्रि का प्रारंभ माना जाता है। अगर किसी कारणवश प्रथम दिन कलश स्थापना नही की गयी है, तो बिना कलश स्थापना के भी नवरात्रों का आरम्भ किया जा सकता है । शुभ संकल्प के साथ मानसिक या प्रतक्ष् पूजा द्वारा भी नवरात्रि व्रत शुरु किये जा सकते हैं ।
प्रतिपदा तिथि को शुभ मुहुर्त में घट स्थापना पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कलश को सर्व तीर्थ की संज्ञा दी गई है । आइये अब जानते हैं कि किस प्रकार हम सर्व सुलभ और सरल विधि से कलश स्थापना करे।
कलश स्थापना करने से पूर्व यह सुनिश्चित करे कि कलश स्थापना दोपहर से पहले अवश्य पुर्ण हो जाये। अगर प्रातः महुर्त उपलब्ध है तो प्रातः कलश स्थापना सर्वोत्तम होती है । इसके अतिरिक्त अभिजीत समय मे भी की जा सकती है ।
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
● सप्त धान्य (7 तरह के अनाज) ( जौ, धान, तिल, कंगनी, मूंग, चना और सांवा )
● मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
● सप्त म्रत्तिका (घुड्साल,हाथीसाल,बांबी,नदियो का संगम,तालाब,राजा का द्वार और गौशाला सात स्थानो की मिट्टी)
● कलश, गंगाजल या तीर्थ जल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
● पंच पल्लव (बरगद,गूलर, पीपल,आम,पाकड)
● सर्वौषधि ( मुरा,जटामासी,वच,कुष्ठ, शिलाजीत,हल्दी,और दारुहल्दी,सठी,चम्पक,मुक्ता)
● सुपारी, गंध, इत्र , यज्ञोपवीत , वस्त्र उपवस्त्र , पान, इलाइची, लॉन्ग, चन्दन ,
● जटा वाला नारियल
● अक्षत (साबुत चावल)
● लाल वस्त्र
● पुष्प (फ़ूल)
अन्य सामग्री धूप, दीप, अगरबत्ती,फल , नैवैद्य आदि
कलश स्थापना विधि
सर्वप्रथम कलश मे रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बना कर गले में तीन धागा वाली कलावा लपेटे और कलश को एक तरफ रख ले कलश स्थापित किए जाने वाली भूमि पर रोली से अष्टदल कमल बना कर उस भूमि का स्पर्श करें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ भूरसि भूमिरस्त्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री ।पृथिवी यच्छ पृथिवीं दृ हं पृथिवीं मा हि सीः ॥
इसकेबाद इस पूजन पृथ्वी पर सप्तधान्य रख दे और इस धरने पर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर कलश की स्थापना करें
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः । पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्त्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः ॥
अब कलशमें जल डालें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ॥
इसके बाद कलश में चंदन डालें और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें –
ॐ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत ॥
अब कलशमें सर्वौषधि छोड़ें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ या ओषधीः पुर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा । मनै नु ब्रभूणामह शतं धामानि सप्त च ॥
अब कलश में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दूब डालें
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती पर्हः परुषसप्रि ।एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्त्रेण शतेन च ॥
इसके उपरांत निम्न मंत्र से कलशपर पञ्चपल्लव रखें
ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता ।गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए कलश में कुश डालें
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ॥
अब कलश में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सात स्थानों की मिट्टी डालें
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी ।यच्छा नः शर्म सप्रथाः ।
इसके बाद कलश में सुपारी छोड़े और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः ।बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः ॥
इसके बाद अगर सामर्थ्य हो तो कलश में पंचरत्न डालें अन्यथा पंचरत्न की जगह चावल छोड़ें
ॐ परि वाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् ।दधद्रत्नानि दाशुषे ।
अब कलश में द्रव्य के रूप में कुछ सिक्के डालें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर कलशको वस्त्रसे अलंकृत करे-
ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः ।वासो अग्ने विश्वरूप सं व्ययस्व विभावसो ॥
अब निम्न मंत्र से कलशपर पूर्णपात्र रखें
ॐ पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत । वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज शतक्रतो ॥
पूर्ण पात्र परपर लाल कपड़ा लपेटे हुए नारियलको निम्न मन्त्र पढ़कर रखे – और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः ॥
अब कलशमें देवि-देवताओंका आवाहन करना चाहिये ।सबसे पहले हाथमें अक्षत और पुष्प लेकर निम्नलिकित मन्त्रसे वरुणका आवाहन करे-
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश स मा न आयुः प्रमोषीः ॥
अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गः सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि ।ॐ भूर्भुवः स्व भो वरुण ।इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण ।’ॐ अपां पतये वरुणाय नमः’
यह कहकर अक्षत-पुष्प कलशपर छोड़ दे ।
फिर हाथमें अक्षत-पुष्प लेकर चारों वेद एवं अन्य देवी-देवताओंका आवाहन करेऔर निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुदः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ॥
आयान्तु देवपूजार्थे दुरितक्षयकारकाः ।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ॥
इस तरह जलाधिपति वरुणदेव तथा वेदों, तीर्थों, नदों, नदियों, सागरों, देवियों एवंदेवताओंके आवाहनके बाद हाथमें अक्षत-पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्रसे कलशकी प्रतिष्ठापना करे-
प्रतिष्ठापना –
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु ।विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥कलशे वरुनाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ।
यह कहकर अक्षत-पुष्प कलशके पास छोड़ दे । इसके वाद सुविधा नुसार कलश की पंचोपचार या शोडषोचार विधि से पुजा करे।
कलश स्थापाना के बाद शोडषोपचार पूजा विधि
कलश स्थापना के बाद कलश की षोडशोपचार विधि से पूजा निम्न प्रकार करें सबसे पहले हाथ में पुष्प लेकर वरुण देवता का ध्यान करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि ।
(पुष्प समर्पित करे ।)
आसन के लिए अक्षत रखे
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से कलश पर जल चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
निम्नलिखित बंद करें कलर्स पर जल से अर्घ्य दें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से कलश को जल से स्नान कराएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि ।
इसके बाद आचमन के लिए कलर्स पर जल गिराए और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से पंचामृत से स्नान कराएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र से गंधक स्नान कराएं (जलमें मलयचन्दन मिलाकर स्नान कराये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र से शुद्ध जल से स्नान कराएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से आचमन कराएं(आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, वस्त्रं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से फिर से आचमन के लिए जल चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
इसके बाद निम्न मंत्र से यज्ञ पवित्र समर्पित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
फिर से आचमन करायें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से उप वस्त्र समर्पित करें(उपवस्त्र चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, उपवस्त्रं (उपवस्त्रार्थे रक्तसूत्रम् ) समर्पयामि ।
फिर से आसमान कराएं (आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से कलश पर चंदन लगाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, चन्दनं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से कलश पर अक्षत चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, अक्षतान् समर्पयामि ।
अब निम्नलिखित मंत्र से पुष्प पुष्प माला आदि चढ़ाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, पुष्पं (पुष्पमालाम्) समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए विभिन्न प्रकार के द्रव्य आदि समर्पित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से सुगंधित द्रव्य चढ़ाएं (इत्र आदि) चढ़ाये ।
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि ।
निम्नलिखित मंत्र से धूप समर्पित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दीपक दिखाएं
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, दीपं दर्शयामि ।
इसके बाद हाथ धो ले
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए नैवेद्य निवेदित करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, सर्वविधं नैवेद्यं निवेदयामि ।
नैवेद्य निवेदन के पश्चात आचमन के लिए जल समर्पित करें और मुख और हस्त प्रक्षालनके लिए जल चढ़ाये
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं, मध्ये पानीयं जलम, उत्तरापोऽशने, मुखप्रक्षालनार्थे, हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से(करोद्वर्तनके लिये गन्ध समर्पित करे ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, करोद्वर्तनं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से पान चढ़ाएं (सुपारी, इलायची, लौंगसहित पान चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, ताम्बूलं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से (द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये ।)
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।
अब आरती करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से दोनों हाथों को जोड़कर के पुष्पांजलि समर्पित करें
पुष्पाञ्जलि – ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
निम्न मंत्र से प्रदक्षिणा करें
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
अब हाथमें पुष्प लेकर इस प्रकार प्रार्थना करे –
प्रार्थना –
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः ।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः ॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः ।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव ।
सांनिध्य कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ॥
‘ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।’
इसके पश्चात निम्नलिखित मंत्र से नमस्कारपूर्वक पुष्प समर्पित करे
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि ।
अब हाथमें जल लेकर निम्नलिखित वाक्यका उच्चारण कर जल कलशके पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म भगवान् वरुणदेवको निवेदित करे-
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम ।
इस प्रकार कलश स्थापना षोडशोपचार विधि सहित संपूर्ण होती है तत्पश्चात इसी तरह षोडशोपचार से दुर्गा देवी की भी पूजा करें और अंत में आरती करके प्रसाद वितरण करें।।